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 श्री सुप्तेश्वर गणेश की स्थापना कैसे हुई?



श्री सुप्तेश्वर गणेश (सिद्ध विनायक) कल्की निज मूर्ती सन 1985 में मुझे स्वप्न में एक बहुत विशाल काय काष्ठ (लकड़ी) का दरवाजा उसमें से एक तेज पुंज नीले पीताम्बर पीले रंग का शेला (दुपट्टा ) गले में जनेऊ और सर पर मुकुट धारण किये बहुत विशाल रूप में गणेश जी प्रकट हुए और भारी जनसमूह के बीच से मुझे (मैं सुधा अविनाश राजे) हाथ से इशारा कर पास बुलाया और मस्तक मेरी और बढ़ा कर कहा मुझे तिलक करों मैंने तिलक रोली अक्षत लगाया और वे अंतर्ध्यान हो गए तभी मेरी नींद टूटी गई |
      27 दिसम्बर 1988 रात में मुझे स्वप्न में जोर जोर से छैनी- हथोड़े कि आवाजें डायनामाईट फटने कि आवाज चट्टानें पहाड़ियां फोड़ी जा रही है कि इसी

बीच एक पहाड़ी पर साक्षात गणेश जी विराजमान है और मुझे आदेश दे रहे कि यहाँ मेरी स्थापना करो|
      करीब पंद्रह दिन बाद फिर आधी रात में वही स्वप्न और वही दृश्य चट्टानें गिर रही है डायनामाईट लगा रहें हैं और गणेश जी कह रहे हैं मेरी स्थापना करो और मेरी नींद टूट गई....... मैंने अपने पतिदेव से बार- बार आ रहे स्वप्न के बारे में बताया पर उनका कहना था कि जबलपुर में अनगिनत पहाड़ियों पर गणेश जी किस पहाड़ी पर है पता करना बहुत कठिन है तुम उन्ही से पूछो इधर मेरे अस्वस्थता (मन की) बढती जा रही थी मैंने गणेश जी से प्रार्थना कि गणेश भगवान मेरी कुछ सहायता करो मेरा मार्गदर्शन करो कहाँ जाना है आप किस पहाड़ी पर हैं इस तरह सोते समय रोज मैं प्रार्थना करने लगी |
      जनवरी 1989 गणेश चतुर्थी को स्वप्न में मुझे सचमुच गणेश जी ने मार्ग दिखाया और अंतर्ध्यान हो गए तब मै प्रेम नगर पोस्ट ऑफिस के पास रहती थी| 4 फरवरी 1989 मैंने पतिदेव के साथ जाकर वो जगह खोजने लगी और हमें वह जगह मिली वही शिला जो स्वप्न में दिखी थी | मेरे सामने थी अब वहां पर कहाँ पर गणेश जी होने सोचते हुए झाड़ियों के आस-पास तलाशने लगी तभी वो स्वयं विशालकाय शिला ही गणेश जी जैसे लगी और हमें साक्षात् गणेश जी मिल गए | "स्वयं- भू" गणेश इतने बड़े रूप में देख कर मेरे आखों से आनंद अश्रु बहने लगे इस टेकरी के वजू में नई बसी एकता विहार कॉलोनी है|
      हमने आस-पास के बंगलो में बताया कि गणेश जी स्थापना करनी हिया सिंदूर करना है | फिर आस-पास साफ़-सफाई करके थोड़ा-थोड़ा कार्य शुरू किया पर ज्यादा सहयोग नहीं रहा फिर भी हम लोगों का प्रयन्त सतत् रहा|
       सितम्बर 1989 को गंगाजल, नर्मदा जल से अभिषेक किया सिंदूर व घी लगाकर स्थापना करके पूजा आरम्भ कि तो धीरे-धीरे 10-15 मिनिट में दो - सौ ढाई सौ लोग एकत्रित हो गए| फिर धीरे-धीरे लोगो का आने का सिलसिला चालू हो गया| जो आज एक जारी है...........................
        विशालकाय शिला याने गणेश जी का चेहरा, वाहन अश्व है| जो भारत वर्ष मध्य भाग में स्थित नर्मदा नदी के किनारे जबलपुर शहर में पहाड़ी के उपर प्रकट हुए हैं| श्री गणेश जी का सन्देश है कि संसार में लोग बहुत गर्विष्ठ हो गए हो गए हैं मदोन्मत लोगों के पाप से धरती पर बोझ बढ़ रहा है | निरअपराध और साधारण लोगों के हितार्थ मैंने यह अवतार लिया है सब मिलजुल कर रहे और मेरी उपासना करें प्रगति के सर्वोच्च्य शिखर पर पहुंचें मानव को अहंकार हो गया है समस्त मानव जाती आज विनास कि सीमा रेखा पर खड़ी है उसी के द्वारा निर्मित अस्त्र आज उसी के विनाशक बन गए है इससे पृथ्वी के नष्ट होने का खतरा बढ़ गया है इसे रोकन मैं आया हूँ युद्ध से कभी किसी का भला नहीं हुआ है युद्ध से चारों ओर आकांत और राख के सिवा क्या मिला है ? क्या तुम आने वाली पीढ़ी ऐसी पृथ्वी दिखाना  चाहते हो मेरे द्वारा निर्मित पृथ्वी के इस अमानवीय रूप को देखकर मुझे उद्देग होआ है..........काश तुम मेरे अदृश्य अश्रु देख पाते………………..